नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

गवाही - सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग : ४/५
उपन्यास ख़त्म करने की तारीक : १३ नवम्बर, २०१४

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट - पेपरबैक
पृष्ठसंख्या - 302
प्रकाशक -  राजा पॉकेट बुक्स




पहला वाक्य:
विष्णु सरनायक के मोबाइल की घंटी बजी ।

गवाही पाठक सर का थ्रिलर सीरीज का उपन्यास है। ये उनका पॉकेट बुक्स के रूप में प्रकाशित २७४ और थ्रिलर उपन्यासों में ५९ है । उपन्यास पुलिस और माफिया के गठजोड़ पर केन्द्रित है । इंस्पेक्टर नीलेश घोखले पुलिस में डॉन अन्ना रघु शेट्टी का मुखबिर रहा है । लेकिन उसकी ज़िन्दगी में परेशानी तब आ जाती है जब उसका छोटा भाई राजेश गोखले, जो कि एक ईमानदार सब इंस्पेक्टर है , एक मोब किलिंग का गवाह बन जाता है । नीलेश उसे गवाही देने से मना करता है लेकिन राजेश इसके तैयार नहीं है । अब अन्ना रघु शेट्टी ने नीलेश को धमकी दी है :
"भाई जान से जाएगा , तू भाई से जाएगा ।" क्या नीलेश राजेश कि जान बचा पायेगा? क्या माफिया इतना ताक़तवर हो चुका है कि वो एक पुलिस वाले को भी आसानी से उड़ा देगा ? इस बात का पता तो आपको इस रोमांचक उपन्यास को पढने के बाद मिलेगा ।



गवाही जैसे कि पहले ही कह चुका हूँ, पुलिस और माफिया गठजोड़ पे केन्द्रित उपन्यास है । उपन्यास का मुख्य पात्र नीलेश गोखले है । वह एक तेज तरार पुलिसवाला है और साथ ही माफिया सरगना शेट्टी के लिए भी काम करता है । वह इस चीज़ को बुरा नहीं मानता है । इसका दूसरा मुख्य किरदार राजेश गोखले है । राजेश अभी नया नया पुलिस में आया है और वो एक कर्तव्यपरायण है । वो नीलेश को अपना गुरु मानता है और समझता है कि नीलेश भी उसी की तरह ईमानदार अफसर है । जब उसे नीलेश के विषय में सच पता चलता है तो ये भी इन दो भाइयों के बीच टक्कर का विषय बनता है । कहानी के अन्य मुख्य किरदार अन्ना रघु शेट्टी है , जो की मुंबई का सबसे प्रभावशाली डॉन है । वो ड्रग्स का कारोबार करता है और बड़ा रसूख वाला आदमी है । उसके बारे में ये बात मशहूर है की उसका पुलिस में रिकॉर्ड एक दम साफ़ है । अन्ना रघु शेट्टी के इलावा उसके दाहिने हाथ सायाजी घोसालकर का भी मुख्य किरदार है । क्यूंकि अन्ना का वर्चस्व इस कथानक के दौरान पहले ही स्थापित था तो पाठक उसे हुक्म बजाते हुए ही देखता है । सायाजी के वाया ही वो सारे काम करवाता है ।  ये किरदार काफी जीवंत लगे और उपन्यास की कहानी इन्ही के इर्द गिर्द बुनी है ।

हाँ, केवल एक चीज़ मुझे उपन्यास में खटकी थी । वो यह की जब शिवराज सावंत ,जो माफिया का शूटर है, लॉज में  हजारे को शूट करता है तो साइलेंसर वाली पिस्तौल का इस्तेमाल क्यूँ नहीं करता है । वो एक अनुभवी शूटर था और इतनी अहतियात बरतना तो वाजिब था । अगर वो ये करता तो किसी को भी कुछ पता नहीं चलता क्यूँकि गोली की आवाज़ सुनकर ही राजेश कमरे तक पहुँचा था । खैर इस बात को छोड़कर और कोई दूसरी बात मुझे नहीं खटकी ।

मैं अपनी कहूं तो मुझे उपन्यास काफी उम्दा लगा ।  पहले तो नीलेश और राजेश  के बीच का टकराव ही पाठक को बांधकर रखता है । वो इस बात को जानने के लिए उपन्यास पड़ता है कि क्या राजेश को रिश्वत लेने के लिए नीलेश राजी कर पायेगा या क्या वो राजेश की जान बचा पायेगा?  फिर कहानी में ऐसे उतार चढ़ाव आते हैं कि पाठक के पास उपन्यास के पन्नो को पलटने के सिवा कोई चारा नहीं बचता है । एक थ्रिलर जब में पढता हूँ तो मैं चाहता हूँ कि कहानी को पढ़ते रहने की मेरी इच्छा बनी रहे और मैं कहीं भी थ्रिलर पढ़ते समय बोरियत का अनुभव न  करूँ । तो इस हिसाब से ये थ्रिलर मेरे लिए काफी अच्छी रही । मुझे उपन्यास काफी पसंद आया है तो मैं तो चाहूँगा आप भी इस उपन्यास को पढ़ें ।

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pustak.org
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