नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

बनारस टॉकीज़ - सत्य व्यास

रेटिंग : ४/५
उपन्यास ११ जुलाई २०१५ से १४ जुलाई २०१५ के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: १९२ | प्रकाशक: हिन्द युग्म



पहला वाक्य :
ये भगवानदास  है  बाउ साहब।

सत्य व्यास जी का उपन्यास बनारस टॉकीज़ बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बी एच यू) में पढ़ रहे तीन दोस्तों कि कहानी है। सूरज , अनुराग और जयवर्धन गहरे मित्र हैं।  उनकी दोस्ती विश्व विद्यालय में  कदम  रखते  हुए  ही  हो  जाती है।  तीनों अलग अलग  परिवेश  से आये हुए  हैं  और उन्होंने अलग-अलग  उद्देश्यों  से विश्व विद्यालय में कदम  रखा  है।  इनके पढ़ाई के ये  साल कैसे  बीतते हैं इसी  के विषय  में ये  उपन्यास है।  उपन्यास  प्रवेशपत्र भरने  से लेकर  नौकरी के  लिए उनकी जद्दोजहत  को  दिखाता  है। भले  ही इस उपन्यास  के  मुख्य  पात्र यही  हैं  लेकिन कई और रोचक किरदारों  से पाठक रूबरू होता  है। तो  कैसे  रहे  इनके  ये साल ? इस  बात को  जानने के लिए  तो आपको इस उपन्यास को पढ़ना पड़ेगा।



अपनी  बात  कहूँ तो  उपन्यास  मुझे बहुत  पसंद आया। उपन्यास  का कथानक  रोचक  है और पढ़ते  वक़्त  इसने  मुझे अपने हॉस्टल  के  दिनों  की याद दिला दी। ये अलग  बात  है  कि मैं क़ानून का  नहीं बल्कि इंजीनियरिंग  का  छात्र था।  उपन्यास के किरदार काफी रोचक है। वो काफी जीवंत लगे। सबकी  अपनी  अपनी  खूबी है जो उपन्यास में रोचकता को कायम रखती हैं।

लेकिन जिस  किरदार ने  मेरे दिल को छुआ वो  हैं दूबे जी  अर्थात  राम नारायण दूबे। उनके  प्रसंग उपन्यास के सबसे  ज्यादा मज़ेदार प्रसंगों  में  से  हैं।   मैं ऐसा  क्यों कह रहा हूँ ये तो आपको इस उपन्यास  को पढने  के बाद ही पता चलेगा। हाँ, पढ़ते समय मैं  ये  सोच रहा था कि अगर कहानी सूरज  के दृष्टिकोण से न होकर दूबे जी के दृष्टिकोण से होती तो पढ़ने में कुछ और  ही आनंद आता।  बहरहाल दूबे जी और भी  प्रसंग को उपन्यास का हिस्सा बनाना चाहिए  था। अगर  ऐसा  होता तो बहुत  मज़ा आता।

बाकी उपन्यास युवाओं का  है  तो इसमें प्रेम भी हैं लेकिन वो उपन्यास का छोटा सा हिस्सा है।  हाँ, उपन्यास का सारा घटनाक्रम मुख्यतः भगवानदास हॉस्टल  में घटता है, तो बनारस टॉकीज़ शीर्षक मुझे इतना नहीं जचा।
उपन्यास में गाली वैसे ही दी गयी हैं जैसे  आम बोल चाल में दी जाती है तो अगर हिंदी की गालियाँ आपको परेशान करती है तो आप परेशान हो  सकते हैं।  लेकिन गालियाँ कहानी कि माँग हैं और ज़बरदस्ती नहीं डाली गयी है तो मुझे व्यक्तिगत तौर पर इससे कोई परेशानी नहीं हुई बल्कि ये किरदारों को एक तरीके कि वास्तिविकता प्रदान करती हैं।

 हाँ , बनारस उपन्यास में  थोड़ा ज्यादा होता तो शीर्षक फिट बैठता। बी एच यू की ज़िन्दगी का कितनी सटीकता से वर्णन है ये तो वो ही लोग बता पायेंगे लेकिन जैसे मैं पहले कह चुका हूँ इंजीनियरिंग वाले तो अपने अनुभवों को इस उपन्यास में देख पायेंगे। बाकी उपन्यास की मैं तो तारीफ़ ही करना चाहूँगा, खासकर  किरदारों की।

उपन्यास आपको ज़रूर पढ़ना चाहिए ।  अगर आपने उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो यकीन मानिये आप एक अच्छे अनुभव  से  महरूम है। मुझे लेखक की अगली कृति का इन्तजार रहेगा।  

 उपन्यास  को  आप  निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं :
अमेज़न

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