नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

वारंट मेरी मौत का - रीमा भारती

रेटिंग : २/५
उपन्यास २० दिसम्बर २०१५ से २४  दिसम्बर के बीच पढ़ा गया


संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या :२०८
प्रकाशक : तुलसी साहित्य पब्लिकेशनस

पहला वाक्य :
"स्टॉप... वरना तुम्हारी खोपड़ी में छेद कर दूँगा... ।" गरजता हुआ स्वर मेरी बायीं दिशा में उभरा था।

रीमा भारती इंडियन सीक्रेट कोर की सबसे बेहतरीन जासूस है। छुट्टियाँ बीताने के बाद जब वो ऑफिस लौटी तो उसके चीफ ने उसे जफ़र खान लोहिया  (जे के ) के विषय में बताया । जे के अफगानिस्तान का बाशिंदा था लेकिन उसके तालुकात दोस्ताना था।  वो गफ्फार नामक नगर में रहते थे। वहाँ पे दहशत खान नामक के एक डिक्टेटर ने पाकिस्तान की सेना के मदद से अपनी हुकूमत स्थापित कर दी थी और जे के को बंदी बना लिया था।
रीमा के चीफ ने सहयोग करने के नाते रीमा को जे के को छुड़ाने का मिशन सौंपा था । क्या रीमा इस मिशन में कामयाब हो पायेगी?
क्या वो दहशतखान, जिसके  साए से गफ्फार की हर रूह थरथराती थी, को हराने में कामयाब हो पायेगी ?
इन सबके जवाब तो बाद में मिलते लेकिन एक बात तो निश्चित थी कि इस मिशन के लिए हामी भरने के बाद रीमा ने ये निश्चित कर लिया था कि दहशत खान उसकी मौत का वारंट जारी कर देगा।



उपन्यास की शुरुआत अच्छी थी। रीमा भारती मिशन के तहत चाइना होकर अफगानिस्तान जाना चाहती है लेकिन उधर हालात ऐसे हो जाते हैं कि उसे चीनियों के लिए एक नए मिशन को रूस अंजाम देना पड़ता है। पूरा उपन्यास इस अनजान मिशन के ऊपर लिखा गया है। और मुख्य मिशन को आखिरी के दस बारह  पन्नो में निपटा दिया गया था। इन पन्नो को पढ़ते हुए लगा  कि जल्दबाजी में ऐसा किया गया। अगर इस मिशन का विवरण भी रूस वाले मिशन की तरह विस्तृत होता तो उपन्यास का मज़ा बढ़ ही जाता।
-
इसके इलावा काफी  प्रिंटिंग की गलतियाँ थी जिन्हें मामूली संपादक ही ठीक कर सकता था।
उदाहरण के लिए :
पेज ३१
आगे बढ़कर मैंने उनकी जेबें टटोली। जेब में चाइना का पिस्टल था।
मेरे हाथे में पिस्टल देख दोनों की रूहें काँप उठी।
मगर...! मेरे यहाँ क्या या बक्शीश नहीं।

अब इसमें आखरी वाक्य तो मेरे दिमाग से ऊपर ही चले गया।
पेज ३२
गर्म पानी ने मेरी सारी थकान उतार दी थी। मैं काफी देर तक नहाई।
जब खून थकान उतर गयी तो -मैं बाहर आ गयी।

अब इस वाक्य का क्या अर्थ है ये भी मेरे समझ से परे है।  ऐसी ही कई गलतियाँ उपन्यास में थी जो कि प्रकाशक उपन्यास के प्रति गैर जिम्मेदाराना रुख को दर्शाता है।

उपन्यास मुझे औसत लगा। अगर ऊपर लिखीं कमियाँ नहीं होती तो उपन्यास में आने वाला आनंद यकीनन बढ़ जाता।
उपन्यास  आपको रेलवे स्टाल में मिल सकता है। अगर उपन्यास आपने पढ़ा है तो अपनी राय टिपण्णी बक्से में देना न भूलियेगा।




FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल