नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

मलिका का ताज - सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग : 3.75
उपन्यास 16 दिसम्बर दो हज़ार सोलह से  17,दिसम्बर दो हज़ार सोलह के बीचे पढ़ा गया

संस्करण विवरण
फॉर्मेट : ई-बुक
प्रकाशक : डेली हंट
पहला प्रकाशन वर्ष : 1980
श्रृंखला - सुधीर कोहली #२

पहला वाक्य :
वह ब्लू स्टार रेस्टोरेंट के उदघाटन की रात थी

नरेन्द्र कुमार दिल्ली का मशहूर स्टॉक ब्रोकर था। वो पैसे वाला आदमी था और सुधीर कोहली का दोस्त एवम क्लाइंट भी था । एक पार्टी में जब उसकी गन खो जाती है तो वो सुधीर को उस गन को बरामद करने के लिये कहता है।  उसे शक है उस पार्टी में मौजूद ही किसी व्यक्ति ने उस गन को हथिया लिया था और अब उससे कुछ गलत कर सकता था।

प्रसन्न कपूर अपने को ट्रबल शूटर, पीआर मैन कहा करता था। उसकी दिल्ली के सोशल सर्किल में काफी पहुँच थी जिस वजह से वो अपना काम बखूबी निभाया कर देता था। इसके इलावा उसकी छवि एक ऐसे आदमी की थी जिसपे लडकियाँ मरा करती थी। वो उसपे फ़िदा हो जाया करती थी और वो भी इस बात का फायदा उठाने से नहीं चूकता था। ऐसे ही चंचल गुप्ता उसके ऊपर फ़िदा हो गयी थी।

चंचल गुप्ता दिल्ली के मशहूर जोहरी दामोदर गुप्ता की एक लौती बेटी थी। वो प्रसन्न कपूर के इश्क में गिरफ्तार थी और उससे शादी करने की इच्छुक थी।

लेकिन फिर वो उसके फ्लैट में उस बंदूक के साथ पायी गयी जिससे प्रसन्न का कत्ल किया गया था। उसके अनुसार उसने ये काम नहीं किया था। बन्दूक नरेंद्र कुमार की थी जो कि चंचल से शादी का इच्छुक था।

किसने चुराई थी नरेंद्र की बन्दूक? किसने किया प्रसन्न का क़त्ल?

वह ताज चार सौ साल पहले एक प्रसिद्ध कारीगर सेलीनी ने राज कुमारी एलिनोरा के लिए बनाया था। आज के वक्त उसका केवल आधा हिस्सा ही अरिस्टोटल डोमिनी के पास मौजूद था। एरिस्टोटल जानता था कि उस ताज का दूसरा हिस्सा दिल्ली में ही कहीं था और उसी की तलाश वो सुधीर कोहली से करवाना चाहता था।

किसके पास था ताज? एरिस्टोटल ताज को क्यों हासिल करना चाहता था?

क्या सुधीर इन सभी सवालों के जवाब ढूँढ पाया?






मलिका का ताज सुधीर कोहली श्रृंखला का दूसरा उपन्यास है। उपन्यास पहली बार वर्ष १९८० में प्रकाशित हुआ था। सुधीर कोहली इस उपन्यास में सत्ताईस साल का लड़का है। वो जासूसी के पैशे  में नया जरूर है लेकिन अपना नाम बना चुका है।


उपन्यास रोचक है। उपन्यास ऐसे किरदारों की कहानी है जो पैसे के कुछ भी करने से गुरेज नहीं करते हैं। वो एक दूसरे को धोखा देते हैं, ब्लैकमेल करते हैं, कत्ल करते हैं। सुधीर भी कुछ हद तक पैसे झटकने में विशवास रखता है लेकिन उसका ईमान फिर भी जिंदा है।  उसे सही और गलत की पहचान है। हाँ,कई बार लगता है कि वो सही और गलत को जुदा करती ऐसे  रेखा पे काम करता है जहाँ एक कदम भी रेखा के पार हुआ तो वो सही से गलत की तरफ जा सकता है।


 सुधीर  की हरकतें मनोरंजन करती है। वो लोगों से पैसे झटकने में माहिर है। उसके इन तरीकों को पढ़ते हुए लगा कि वो ठीक ही अपने को दिल्ली का नंबर एक हरामी कहता है। अपने नाम पर वो पूरी तरह खरा उतरता है।  अगर सुधीर और उसकी हरकतें इस उपन्यास में नहीं होती तो ये एक फीका उपन्यास होता। इसीलिए मैंने जो रेटिंग दी है वो दो हिस्सों में हैं। सुधीर के लिए 5/5 और कहानी के 2.5/5।यानी औसत हुआ 3.75।

ऐसा नहीं है मैं हर जगह सुधीर की हरकतों से सहमत था।  कुछ जगह मुझे उसकी हरकतों से इत्तेफाक नहीं था। उपन्यास का एक प्लाट पॉइंट ये है कि वो एक लड़की के साथ हम बिस्तर होना चाहता है। वो उसे चैलेंज देता है कि वो ऐसा करके रहेगा। जब मैं पढ़ रहा था तो मुझे लगा कि वो उसके अन्दर अपने लिए प्यार जगा देगा। लेकिन वो ब्लैक मेल का रास्ता चुनता है।  ये मुझे गलत लगा क्योंकि वो इसमें कामयाब भी हो जाता है।

उपन्यास की कहानी की बात करूँ तो कहानी औसत से थोड़ी अच्छी है। यह सीधी कहानी थी। सुधीर को दो केस मिलते हैं और दोनों ही आपस में जुड़े होते हैं। ये बहुत बड़ा संयोग है। मुझे इसे पचाने में थोड़ी सी दिक्कत हुई। अगर दोनों केस अलग अलग होते तो शायद ज्यादा मज़ा आता। पाठक साहब ने हमे इतनी बेहतरीन कहानियाँ दी हैं कि अगर वो अच्छी कहानी भी देते हैं तो वो हमे औसत से थोड़ा अच्छी ही लगती हैं क्योंकि हम उसकी तुलना उनके बेहतरीन उपन्यासों से न चाहते हुए भी करने लगते हैं।

अंत में इतना कहूँगा कि उपन्यास पढ़कर काफी अच्छा लगा। उपन्यास ने   विशेषतः सुधीर कोहली ने मेरा भरपूर मनोरंजन किया। इसे एक बार पढ़ा जा सकता है।

उपन्यास के कुछ अंश :
सोफिया के होंठों पर एक मासूम मुस्कान आई।
एक नौजवान, खूबसूरत लेकिन नंगी औरत के होंठों पर आई मासूम मुस्कराहट से ज्यादा फसादी चीज दुनिया में और क्या हो सकती थी।

खुदा ने अपनी खुदाई में जो सबसे शानदार चीज बनाई थी, वह निर्विवाद रूप से औरत थी। औरतों का सबसे बड़ा गुण यह है कि जो अच्छी हैं वो तो अच्छी हैं ही लेकिन जो बुरी हैं वो और भी अच्छी हैं।

उपन्यास मैंने डेली हंट एप्प पर पढ़ा था। इसकी हार्ड कॉपी अब प्रिंट में नहीं है तो आपको उसी पे इसे पढना होगा। निम्न लिंक पर जाकर आप उपन्यास के विषय में जान सकते हैं और उपन्यास पढने के लिए आप अपने फोन पर डेली हंट एप्प इस्तेमाल कर सकते हैं।

डेली हंट
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