नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

सत्यजित राय की कहानियाँ

कहानी संग्रह 27 जनवरी 2017 से 6 फरवरी, 2017 के बीच पढ़ा गया


संस्करण विवरण :
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 192 | प्रकाशक: राजपाल | अनुवादक: योगेन्द्र चौधरी



सत्यजित राय जी को वैसे दुनिया मुख्यतः एक फिल्म निर्देशक के रूप में जानती है। उन्हें बीसवीं सदी का महानतम फिल्म निर्माता माना जाता है। उन्होंने कई बेहतरीन फिल्मो का निर्माण किया।  लेकिन इसके इलावा वे एक अच्छे कहानीकार भी थे। उन्होंने फेलुदा, प्रोफेसर शंकु जैसे कभी न भुला पाने वाले रोचक  किरदारों की रचना की।
  
प्रस्तुत संग्रह में सत्यजित राय जी की  बारह कहानियों को हिंदी में अनूदित किया हुआ है। इन कहानियों में  हॉरर, विज्ञान गल्प, रहस्य और  अलौकिकता के तत्व हैं जिन्हे पढ़कर पाठक का भरपूर मनोरंजन होता है।
मुझे इतना उम्दा कहानी संग्रह पढ़े हुए काफी वक्त हो गया। मुझे इसे पढ़ते हुए भरपूर आनंद आया। कोई भी कहानी मुझे बेकार नहीं लगी। सभी कहानी ऐसी हैं जिन्हें आप एक एक बार पढने बैठेंगे तो पूरी पढ़े बिना नहीं छोड़ेंगे।

कहानियाँ मूलतः बंगाली में लिखी गयी थी लेकिन योगेद्र चौधरी जी का अनुवाद पढ़ते हुए इसका एहसास नहीं होता है। ये एक अच्छी बात है और ऐसे अनुवाद के लिए योगेन्द्र जी कि जितनी तारीफ की जाए वो कम है। हाँ, इन कहानियों का जिन्होंने भी चुनाव किया है यानी सम्पादक महोदय भी तारीफ के हकदार हैं। किताब में सम्पादक के विषय में कोई जानकारी नहीं थी तो मैं उनका नाम इधर नहीं लिख सका।

कहानी संग्रह में  निम्न कहानियाँ  हैं:


१. प्रोफेसर हिजबिजबिज
पहला वाक्य:
मेरे साथ जो घटना घटी है, उस पर शायद ही कोई विश्वास करे।

ओड़िसा के गंजम जिले के एक छोटे शहर गोपालपुर में हिमांशु चौधरी छुट्टी बिताने गये थे।  वो ऑफिस में काम करने के इलावा अंग्रेजी जासूसी उपन्यासों का बाँग्ला अनुवाद भी करते थे। और इस तीन हफ्ते की छुट्टी में एक उपन्यास को अनूदित करने की उनकी इच्छा थी।
लेकिन वो नहीं जानते थे कि गोपालपुर में उनके साथ ऐसी घटना होगी जिसके होने की उन्हें कभी सपने में भी कल्पना नहीं की होगी।

क्या हुआ उनके साथ? ये जानने के लिए तो आपको इस कहानी को पढ़ना होगा। कहानी की शैली की बात करें तो इसे हम विज्ञान गल्प और हॉरर के साथ रखेंगे। कहानी मुझे पसन्द आयी।

२. फ्रिन्स 3.5/5
पहला वाक्य:
जयन्त की ओर कुछ क्षणों तक ताकते रहने के बाद उससे सवाल किए बिना नहीं रह सका,'आज तू बड़ा ही मरियल जैसा दिख रहा है? तबियत खराब है क्या?'

जयन्त और शंकर दो गहरे दोस्त हैं। उन दोनों ने राजस्थान जाने का विचार बनाया और सबसे पहले बूंदी जाकर बूंदी किला देखने का मन बनाया। जयन्त बचपन में बूंदी आया था और अपनी बचपन की यादें ताज़ा करना चाहता था। लेकिन कुछ यादें ऐसी होती हैं जिन्हें भूल जाना ही बेहतर हैं। और जयन्त इस बात को जानने वाला था।

बूंदी में जयन्त और शंकर के साथ क्या हुआ???
ये एक हॉरर कहानी है जिसे पढ़ना बेहद मनोरंजक अनुभव था।

३. ब्राउन साहब की कोठी 4/5
पहला वाक्य:
जब से ब्राउन साहब की डायरी मिली थी, बंगलौर जाने का मौका ढूँढ रहा था।

रंजनसेन गुप्त पुरानी किताबों का शौक़ीन था। इसी शौक के चलते उसके हाथ में ब्राउन नामक अंग्रेज की डायरी आयी। इस एक सौ तेरह साल पुरानी डायरी में एक भूत का जिक्र था। अब रंजनसेन गुप्त बेंगलुरु जाकर ब्राउन सहाब की कोठी में जाकर इस भूत को अपनी आँखों से देखना चाहता था।
क्या वो जा पाया?? ये भूत का क्या चक्कर था?

एक हॉरर मिस्ट्री जिसने मेरा पूरा मनोरंजन किया। आपको इस कहानी को एक बार जरूर पढ़ना चाहिए।


४. सदानन्द की छोटी दुनिया 3/5
पहला वाक्य:
आज मेरा मन खुश है, इसलिए सोचता हूँ, तुम लोगों को राज की बात बता दूँ।

सदानन्द चक्रवर्ती एक तेरह वर्षीय बालक है। उसकी अपनी दुनिया है जिसमे वो खुश है। उसे जिन चीजों में दिलचस्पी है वो अक्सर वो होती हैं जो आम लोगों की नज़र में नहीं आतीं हैं।

आख़िर वो क्या चीजें हैं? सदानन्द आपको अपनी दुनिया में ले जाना चाहता है। आपको पता है इसके लिए आपको क्या करना है।

बच्चों की कहानी मुझे बहुत पसंद है। सदानन्द एक प्यारा सा बच्चा है और मुझे उसकी दुनिया में जाना बहुत अच्छा लगा। उसके दोस्तों से मिलकर भी बड़ी खुशी हुई। यूँ कहूँ अपना बचपन याद आ गया तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

५. खगम 4/5
पहला वाक्य:
हम पेट्रोमैक्स की रौशनी में बैठकर डिनर ले रहे थे।

आगरे  से जयपुर की तरफ जाते हुए कथावाचक भरतपुर रुकने का मन बनाता है। उसे जगह न मिलने के कारण एक फारेस्ट गेस्ट हाउस में रहना होता है जहाँ उसकी मुलाकात धुर्जटि प्रसाद बसु से होती है जिसके साथ वो भरतपुर में घूमने लगते हैं। यहीं उन्हें इमली बाबा के विषय में पता चलता है जो कि भरतपुर के प्रसिद्द साधु हैं और जिनका एक पालतू नाग है जो रोज उनके पास दूध पीने आता है। 
धुर्जटि बाबू इसे एक ढोंग मानते हैं। उनके अनुसार भारत के सौ में से नब्बे से ऊपर साधु सन्त ढोंगी होते हैं। वे मानते हैं कि  नाग को कोई भी पालतू नहीं बना सकता है। और इमली बाबा एक जालसाज हैं जो कि लोगों के अंधविश्वास को भुना रहे हैं। लेकिन फिर भी उस ढोंगी बाबा से मिलने के लिए तैयार हो जाते हैं। 
उनकी मुलाकात का निष्कर्ष क्या निकलता है? धुर्जटि बाबू क्यों साधुओं पे विश्वास नहीं करते थे? क्या सचमुच इमली बाबा ढोंगी थे? या सच में उनके पास एक पालतू नाग था ? 

खगम महाभारत के एक पात्र हैं। अगर आप इस पात्र से परिचित हैं तो इनकी कहानी से इस कहानी का अंदाजा लगा सकते हैं और अगर परिचित नहीं हैं तो कहानी पढने के बाद आपको इस विषय में पता चल जाएगा।
कहानी पढने में मुझे बड़ा मज़ा आया। एक रोमांचक कहानी है।


६. रतन बाबू और वह आदमी 5/5
पहला वाक्य :
ट्रेन से उतरने के बाद रतन बाबू ने जब अपने इर्द-गिर्द निगाह डाली तो उनका मन खुशियों से भर उठा।

रतन लाल बाबू को घूमने का बड़ा शौक है और अक्सर पूजा की छुट्टियों में घूमने निकल जाते हैं। ये घूमना फिरना ज्यादातर अकेले ही होता है। ऐसा नहीं है कि रतन बाबू किसी का साथ पसंद नहीं करते लेकिन ज्यादातर लोगों से उनके घूमने के ऊपर विचार मिलते नहीं हैं और वो समझते हैं कि वो उसी के साथ घूमने में सहज होंगे जो थोड़ा उनकी तरह सोचता हो। इस बार की छुट्टियों में उन्होंने सिनी का रुख किया है। इधर उनके साथ क्या घटित होता है यही कहानी का सार है।

कहानी बहुत रुचिकर है। मैंने एक बार शुरू की तो पूरा पढने के बाद ही रुका। हाँ, अंत ने थोड़ा सा भ्रमित कर दिया।  क्या कहानी में पूर्व सूचना(premonition) है? क्या दूसरा आदमी सचमुच था या एक ही व्यक्ति एक बार में दो जगह था। उनके बीच क्या सम्बन्ध थे? ऐसे ही कई सवाल कहानी  को पढने के बाद मन में रह जाते है। आपने इस कहानी को पढ़ा है तो इसके विषय में जरूर मेरी जिज्ञासा शांत कीजियेगा।

७. भक्त 3.5/5 
पहला वाक्य:
अरूप बाबू- यानी अरूप रतन सरकार- ग्यारह साल के बाद पुरी आए हैं।

अरूप रतन बाबू जब ग्यारह साल बाद पुरी आये तो उनके मन में अच्छी छुट्टियाँ बिताने के सिवा कोई और ख्याल नहीं था। फिर उनके साथ ऐसा कुछ हुआ कि उन्होंने अपने आप को अमलेश मौलिक, एक साहित्यकार जो बच्चों के लिए लिखते थे, की तरह लोगों से मिलते जुलते पाया। असली अमलेश मौलिक भी कुछ दिनों में पुरी आने वाले थे।

रतन बाबू ने क्यों ऐसा व्यवहार करना शुरू किया? अमलेश मौलिक की इस विषय में क्या प्रतिक्रिया रही?

एक मज़ेदार कहानी। पढने में मज़ा आया।


८. झक्की बाबू 4.5/5
पहला वाक्य:
झक्की बाबू का असली नाम पूछ ही न सका।

कथावाचक जब दस दिनों की बाकी बची छुट्टियों में दार्जिलिंग  जाता है तो उसकी मुलाकात एक व्यक्ति से होती है। वो व्यक्ति कभी फिजिक्स का प्रोफेसर हुआ करता था लेकिन दार्जिलिंग में झक्की बाबू के नाम से विख्यात है।  क्या था इन बाबू का झक्कीपना? और कथावाचक के क्या अनुभव हुए इनके साथ ?

कहानी बड़ी मजेदार थी।  कहानी के विषय में कुछ भी विस्तृत रूप से कहना उसका मज़ा किरकिरा करना होगा बस इतना कहूँगा इस कहानी में एक किरदार के पास साइकोमेट्री, यानी किसी भी वस्तु को छूकर उसके अतीत के विषय में जानकारी पा जाने, की ताकत होती है। यह विषय काफी दिलचस्प है और कहानी में बड़ी खूबी से पिरोया गया है जिससे अंत तक कहानी में रहस्य और रोमांच बना रहता है।

९. बारीन भौमिक की बीमारी
पहला वाक्य:
कंडक्टर के निर्देशानुसार 'डी' डिब्बे में घुसकर  बारीन भौमिक ने अपना बड़ा सूटकेस सीट के नीचे  रख दिया।

बारीन्द्रनाथ भौमिक उर्फ़ बारीन भौमिक एक जाने माने गायक थे। पाँच साल से वो अपनी प्रसिद्धि के चरम पे थे। उनके कई शोज होते थे जिनके सिलसिले में उन्हें इधर उधर जाना होता था। इसी कारण वो दिल्ली जा रहे थे। ट्रेन में उनके कम्पार्टमेंट में जब उस व्यक्ति ने कदम रखा तो बारीन को एहसास हुआ कि वो उन्हें जानते हैं लेकिन उस व्यक्ति ने ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। लेकिन जब भौमिक को ये बात याद आई कि किन हालातों में वो उससे मिले थे तो उन्होंने भगवान ने प्रार्थना की कि अब उस आदमी को मुलाकात याद न आये।

ऐसा क्या हुआ था भौमिक और उस आदमी के बीच? क्या उसे इस बात का पता चला?

ये कहानी जब मैंने पढनी शुरू की तो मुझे इसका एहसास नहीं हुआ लेकिन कहानी का एक भाग पढ़कर मुझे एहसास हुआ कि मैंने ये कहानी पहले पढ़ी है। शायद स्कूल के वक्त में और इस कहानी का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा था। कहानी पढ़ी तो हुई थी लेकिन इसका अंत मुझे याद नहीं था और ये अच्छी बात ही थी।


१०. सियार देवता का रहस्य 4/5
पहला वाक्य:
'टेलीफोन किसने किया था, फेलुदा?'

नीलमणि बाबू एक धनवान व्यक्ति थे जिन्हें कलाकृतियाँ इकठ्ठा करने का शौक था। लेकिन कुछ दिनों से उनके पास रहस्यमयी चिट्ठियाँ आ रही थी। इन चिट्ठियों में अजीब से आकृतियाँ बनी हुई थी। इसने उनके मन में डर पैदा कर दिया था।  उन्हें लग रहा था कि हो न हो ये किसी तरह की धमकियाँ है।

और इसलिए उन्होंने प्रदोष मित्तर यानी फेलुदा को फोन किया था।  वो चाहते थे कि वो इन रहस्यमयी चिट्ठियों के कारण का पता लगाए।

आखिर उन्हें ये चिट्टियाँ क्यों मिल रही थी? कौन था इनके पीछे?

फेलुदा के विषय में मैंने काफी सुना है। इसकी कहानियों का एक अंग्रेजी संग्रह भी मेरे पास मौजूद है लेकिन अभी उसे पढने का मौका हाथ नहीं लगा। ये मेरी पहली कहानी थी और इसने मेरी रूचि को जागृत कर दिया है। जल्द ही उस संग्रह को  पढूँगा। कहानी रोमांचक है। मैंने रहस्य के एक हिस्से का पता तो लगा लिया था लेकिन पूरे रहस्य की जानकारी कहानी के अंत में जाकर ही पता चली। ये एक अच्छी कहानी होने का द्योतक है।


११. समाद्दार की चाबी 5/5
पहला वाक्य:
फेलुदा बोला,'यह जो पेड़-पौधे, मैदान-जंगल देखकर आँखे जुड़ जाती हैं, इसका कारण तुझे मालूम है?'

राधारमण समाद्दार की मृत्यु हो चुकी थी। मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। राधारमण किसी जमाने में गाने बजाने के शौक़ीन हुआ करते थे और इस बात के लिए प्रसिद्द भी थे।  फिर रिटायरमेंट के बाद अलग रहने लगे और वाद्यंत्रों को इकठ्ठा करने लगे।
वो अमीर तो थे  लेकिन वो बेहद कंजूस भी थे।
अब उनके मरने के बाद उनका  भतीजा मणिमोहन समाद्दार फेलुदा के पास आया था। उसका कहना था कि मरने से पहले राधारमण ने उससे कुछ कहा था और उसमे ही उनके पैसे का राज़ छुपा था। पैसा मिलता तो उनकी वसीयत के हिसाब से उनके उत्तराधिकारी को मिलता।
आखिर राधारमण बाबू ने मरने से पहले ऐसा क्या कहा था? क्या प्रदोष मित्तर उर्फ़ फेलुदा इसका पता लगा पाया ?

कहानी मजेदार है। माहौल रहस्यमयी होने के बावजूद ज्यादा स्याह नहीं है। प्रदोष मित्तर और उसके भाई तपेश उर्फ़ तोपसे के बीच जो रिश्ता है वो आम भाइयों के बीच में जैसा होता है वैसा  ही है। गाहे बगाहे फेलुदा उसे डांट देता है और तपेश  भी कुछ बोलने से पहले ये सोचता है कि अगर वो फेलुदा के विपक्ष में कुछ बोले तो कहीं फेलुदा नाराज़ न हो जाये और उसे अपने साथ तहकीकात में शामिल न करे। इनका रिश्ता शर्लाक और वाटसन या व्योमकेश और अजित जैसा होते हुए भी अलग है। ये दोस्त नहीं भाई हैं। अभी तो मैंने इसकी कुछ ही कहानी पढ़ी हैं लेकिन इस रिश्ते में समय के साथ कैसा बदलाव होता है वो देखने के लिए भी मैं पूरे संग्रह को पढना चाहूँगा।


१२. घुरघुटिया की घटना 5/5
पहला वाक्य:
सेवा में,
श्री प्रदोष मित्र
महोदय,
आपके कीर्ति-कलाप के बारे में सुनने के बाद आपसे भेंट करने की इच्छा मन में जगी है।

फेलुदा को कालीकिंकर मजूमदार का घुरघुटिया आने का निमंत्रण मिला तो उसने उधर जाने का फैसला कर दिया।  वो एक तिहत्तर साल के बुजुर्ग थे और चिट्ठी के हिसाब से इस निमंत्रण का एक विषय कारण भी था।
आखिर फेलुदा को उधर क्यों बुलाया जा रहा था? क्या वो कालीकिंकर जी की समस्या का समाधान कर पाया?

ये कहानी भी रहस्य से  भरी हुई है। कहानी की शुरुआत जिस हिसाब से हुई उसने मुझे थोडा शंकित किया लेकिन आखिर में उसने जो मोड़ लिया उसे पढ़कर मज़ा ही आ गया।

मेरी राय में अगर आप  अच्छी  कहानियों के शौक़ीन है तो आपको इन्हें जरूर पढ़ना चाहिए।
ये आपका भरपूर मनोरंजन करेंगी। अगर आपने इन्हें पढ़ा है तो इनके विषय में अपनी राय जरूर दीजियेगा। और आपने नहीं पढ़ है तो इस किताब को आप निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं:
FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

13 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. We are self publishing company, we provide all type of self publishing,printing and marketing services, if you are interested in book publishing please send your abstract

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया समीक्षा लिखी।हर कहानी की इंडिविजुअल समीक्षा की।हाँ कुछ टाइपिंग मिस्टेक्स हैं जिन्हें सुधार लें

    अतिश्योक्ति
    माहोल
    फेलुद
    दार्जलिंग
    प्राथना
    साधू
    बारिन्द्र्नाथ
    आदि

    ReplyDelete
    Replies
    1. टिप्पणी और गलत वर्तनी के प्रति ध्यान दिखाने के लिए शुक्रिया। मैंने वर्तनी में सुधार कर लिया है।

      Delete
  3. आपने रेटिंग गलत की है।सभी कहानियों को अलग अलग रेटिंग दी है और समवेत रेटिंग 5/5 दी है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. इसमें गलत कुछ नहीं है। जहाँ कहानियों अलग अलग पढ़ने पर इनका प्रभाव अलग अलग हो सकता है लेकिन एक संग्रह के रूप में जो असर मुझ पर हुआ वह मेरे लिए 5/5 है।

      Delete
    2. ओह माय गॉड......आई सी...

      ऐसा भी होता है।

      Delete
    3. जी ऐसा तो अक्सर होता है... यह चीजें वस्तुपरक नहीं व्यक्तिपरक होती हैं....... कौन सी चीज किस पर किस तरह का असर डाल रही है इस पर निर्भर करता है.....मैंने इस संग्रह को 5/5 रेटिंग दी है हो सकता है आप 1/5 दें.... तो यह आम बात है....

      Delete
    4. समीक्षा व्यक्तिपरक नही वस्तुपरक होनी चाहिए।यदि आपने स्वांतः सुखाय लिखी है तो अच्छी बात है।

      Delete
    5. समीक्षा वस्तुपरक हो ही नहीं सकती है। इसके कोई तय पैमाने नहीं होते हैं। कला में क्या अच्छा है और क्या बुरा यह निश्चित नहीं होता है। यह वक्त के साथ बदलता रहता है। कई रचनाएँ ऐसी होती है जिन्हें समीक्षकों ने नकार दिया क्योंकि वो उनके तय पैमानों पर खरी नहीं उतरी लेकिन बाद में वह क्लासिक कहलाई। अगर चीजें वस्तुपरक होतीं तो एक सी प्रतिक्रिया उत्पन्न करती।जिन्हें समीक्षक उच्च स्तर का मानते वह लोकप्रिय भी होती। पाठकों को भी जोड़ती। लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता है। क्योंकि कई बार समीक्षक जो किसी रचना में देख पाता है वह पाठक नहीं देख पाता है और कई बार पाठक जो एक रचना में देख पाता है वह समीक्षक नहीं देख पाता। अलग अलग समीक्षकों की राय भी एक ही रचना के बारे में अलग अलग हो सकती है।क्योंकि कोई चेक लिस्ट नहीं बनी है कि रचना में यह निश्चित वस्तु हैं तो ही अच्छी है और वो चीजें नहीं हैं तो बेकार हैं। बाकी कला स्वान्तः सुखाय ही होनी चाहिए।

      Delete
    6. कांति शाह की फिल्म 'गुंडा' मुझे बहुत पसंद आई थी।द्विअर्थी संवादो और अन्तरंग दृश्यो से परिपूर्ण काफी मसालेदार फिल्म थी।मैने इसे अनेक बार देखा है और अगली बार देखूंगा तो भी उतना ही मनोरंजन होगा जितना पहली बार देखने पर हुआ था।तो ये फिल्म जब रिलीज हुई होगी तो दर्शक इसपर इस तरह टूट पडे होंगे जिस तरह मरे हुए मवेशी पर गिद्ध टूट पडते है।
      ये फिल्म मुझे उतनी ही पसंद है जितना आपको ये कहानी संग्रह।
      तो क्या इसे मै 5/5
      स्टार दे दूं?
      हालांकि ये विवादास्पद फिल्म है,अनेक नारी संगठनो के मुकदमे इसके नाम दर्ज है।
      मैने इस फिल्म को 2/5 स्टार दिये है।
      क्योंकि मै अपनी व्यक्तिगत पसंद को महत्त्व देकर समीक्षकीय तत्त्व के साथ खिलवाड नही कर सकता।

      हम अनैतिक और गैर सामाजिक चीजो को व्यक्तिगत तौर पर पसंद कर सकते है परन्तु उन्हे अच्छी रेटिंग देकर सार्वजनिक रूप से महिमामंडित नही कर सकते।

      Delete
    7. आप कितने स्टार देना चाहते हैं यह आप पर निर्भर करता है। आप कितना देते हैं यह भी आप पर निर्भर करता है। आप किन पैमानों पर बैठाकर फिल्म की समीक्षा करते हैं यह भी पूरी तरह आप पर निर्भर करता है। फिल्म की समीक्षा के अपने दो मापदंड तैयार किये हैं। एक मनोरंजन और दूसरा समाजिक कल्याण की बात है। इन दोनों मापदंडों पर आपने फिल्म को परखा और फिर निर्णय लिया। यह आपके मापदंड हैं। गुंडा फिल्म आपके मनोरंजन वाले मापदंड पर तो खरी उतरती है लेकिन दूसरे मापदंड पर नहीं खरी नहीं उतरती है। कई फिल्म समीक्षक इसके अलवा फिल्म के तकनीकी पहलू पर भी ध्यान देते हैं तो वह उन मापदंडों के हिसाब से फिल्म को परखते हैं। देखिये आप जो रेटिंग देंगे उससे मुझे या समाज को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। समाज के लोग आपसे और मुझसे ज्यादा समझदार हैं। आप किसी फिल्म को पाँच रेटिंग भी देंगे तो मैं केवल इसलिए नहीं देखने वाला हूँ कि उसे पाँच की रेटिंग दी गयी है क्योंकि मैंने पहले ही कहा वह वस्तुपरक नहीं है व्यक्तिपरक चीज होती है। गुंडा कैसी फिल्म है इस पर मैं राय नहीं दे पाऊँगा क्योंकि मुझे उसे देखने की इच्छा ही नहीं हुई कभी।

      Delete
    8. ऐसा भी हो सकता है कि आपको गुण्डा मनोरंजक लगती हो लेकिन मुझे न लगे। आपके दो में से एक पैमाने पर फिल्म खरी नहीं उतरती है लेकिन ऐसा हो सकता है कि मेरे मामले में मेरी किसी भी पैमाने पर फिल्म खरी न उतरे।

      Delete
    9. ठीक है,समीक्षा वस्तुपरक नही होती,लेकिन आज के समय मे तो व्यक्तिपरक भी नही रही।आजकल के नौसिखिए लेखको की औसत से भी निचले दर्जे की किताबो के रिव्यू पढे है आपने अमेजॉन और किंडल पर?
      लेखक पाठक को एक प्रति फ्री मे भेज देता है और साथ मे पत्र भेजता है कि मेरी किताब पढकर एक अच्छा सा रिव्यू दे देना।
      अब ये 'अच्छा सा रिव्यू' क्या होता है?
      रिव्यू,रिव्यू होता है।
      सीधे सीधे यही कह दो कि विज्ञापन लिख देना।
      आजकल विज्ञापन को रिव्यू समझा जाता है और रिव्यू को नेगेटिव रिव्यू समझा जाता है।
      इसे थोडा गहराई से समझिए।

      ये 'नेगेटिव रिव्यू' शब्द पहले नही था अभी हाल ही मे ईजाद किया गया है उन लोगो के द्वारा जिनकी झूठी प्रशंसा कितनी भी करो उफ्फ नही करेंगे।और सच्ची आलोचना करो तो बर्दाश्त नही करेंगे।

      Delete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल