नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

पोस्टमार्टम - अजीत कौर

रेटिंग : 4/5
उपन्यासिका सितम्बर 6, 2018 से सितम्बर 8,2018 के बीच पढ़ी गई

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 96 | प्रकाशक: किताबघर प्रकाशनआईएसबीएन: 9789382114659 | अनुवादक: सुभाष नीरव | मूल भाषा: पंजाबी

पोस्टमार्टम - अजीत कौर
पोस्टमार्टम - अजीत कौर


पहला वाक्य:
दिसम्बर की इस ठिठुरती रात में मैं बिस्तर पर लेटे हुए अपने जिस्म को मानो करीब खड़े होकर देखती हूँ।

वह उससे दो साल बड़ी थी। वो दोनों एक दूसरे को प्यार करते थे। वो शादी शुदा था लेकिन उसकी शादी केवल नाम की शादी थी। यह वो दोनों जानते थे। उन्होंने साथ में सपने संजोये थे। इन सपनों में वह दोनों साथ थे। एक खुशहाल जीवन जीने की इच्छा को पूरा कर रहे थे - दिल्ली से दूर,रिश्तेदारों से दूर। ऐसी जगह जहाँ उनसे कोई सवाल करने वाला न हो। उनकी एक अलग दुनिया हो जिसे वो अपने मन मुताबिक सजा सके।

पर यह रिश्ता जिसकी उम्र दो साल थी, अचानक से मर गया था। उसके लिए वह नितांत अजनबी बन गया था।

आखिर ऐसा क्यों हुआ था? क्या कमी रह गई थी? क्या कारण  थे?

यही सब प्रश्न उसे परेशान कर रहे थे।


मुख्य किरदार:
मीरा - कथा की नायिका जो कथावाचक भी है
अविनाश बाजवा - मीरा का प्रेमी
शीना -मीरा की बहन
कंवल - अविनाश का दोस्त
सुनीता - कंवल की पत्नी
मोना - मीरा की दोस्त

अजीत कौर जी की उपन्यासिका इस बार पढ़ी। यह उपन्यास मैंने इस साल हुए दिल्ली विश्व पुस्तक मेले(पुस्तक मेले की घुमक्कड़ी के विषय में पढ़ने के लिए आप इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं) में खरीदा था। मेला जनवरी में था और इसलिए यह काफी जल्दी हो गया कि इस उपन्यासिका को मैंने पढ़ा। अक्सर खरीदने के एक आध साल बाद ही किताब पढ़ने का वक्त लगता है। खैर, यह भी अच्छा हुआ। अजीत कौर जी के नाम से मैं उस वक्त भी वाकिफ नहीं था जब इस किताब को खरीद रहा था। मैंने किताब उठाई और चूँकि एक तो यह ऐसी लेखिका की थी जिनसे मैं परिचित नहीं था और दूसरी यह पंजाबी से हिन्दी में अनूदित थी तो ले ली। मैं जब भी पुस्तक मेले में जाता हूँ तो मेरी प्राथमिकता ऐसे ही किताबों को लेने की होती है जो या तो किसी अनजान रचनाकार की  हों या वो दूसरी भारतीय भाषा से हिन्दी में अनूदित की गई हों। यह किताब दोनों ही मुख्य मापदंड पर खरी उतरती थी। यह तो हुई बात कि किताब मेरी ज़िन्दगी में कैसे आई। अब किताब कैसी है इस बात पर बात की जाए।

पोस्टमार्टम में कहानी एक महिला सुना रही है। यह महिला अड़तीस साल की है। किताब पढ़ते हुए आप जान जाते हैं कि महिला अपने एक प्रेम के विषय में बता रही है। वह प्रेमी कैसा था? रिश्ता कैसा था? यह सब पाठक को धीरे धीरे पता चलता है। पढ़ते वक्त आपको अंदाजा हो जाता था कि रिश्ते का अंत सुखद नहीं हुआ होगा। फिर भी ऐसा उनके बीच क्या हुआ यह जानने के लिए आप पढ़ते चले जाते हैं।

कहानी में पात्रों के नाम बहुत बाद में पता चलते हैं। तब तक यह कहानी किसी की भी हो सकती है। अक्सर जब कोई रिश्ता खत्म होता है तो हम लोग उसके विषय में सोचते हैं। आखिर वो क्यों हुआ? क्या कारण था? ऐसा मैंने भी किया है और क्या पता आपने भी किया हो। ऐसा करने में जिन जिन प्रक्रियायों से हम गुजरते हैं उनसे कहानी की कथावाचिका भी गुजरती है। उसी के माध्यम से हमे पता लगता है कि जिससे वो प्रेम समबन्ध भी उसकी गुजरी ज़िन्दगी कैसी थी? वो अब जैसा था वो ऐसा क्यों था? हाँ, यहाँ हमे कथा वाचिका की गुजरी ज़िन्दगी के विषय में कुछ पता नहीं चलता है। वो अड़तीस साल की है। अभी तक अकेली है। दो साल से प्रेम सम्बन्ध में है। लेकिन इससे पहले की जिंदगी कैसी थी? इस विषय में कम जानकारी मिलती है। अगर यह जानकारी भी होती तो बढ़िया रहता।

कहानी में अगर दूसरे किरदार की बात करूँ तो वह केवल आखिरी में आता है। मीरा उससे मिलती है और वो अपनी बात रखता है जिससे मीरा को शायद क्लोजर पाने में सहूलियत होती है। इस एक प्रसंग के अलावा कहानी पूरी मीरा के दृष्टिकोण से ही लिखी गई है।

उपन्यासिका में एक ऐसा व्यक्ति  है जिसे अपने दुःख में सुख मिलता है। ऐसे कई लोगों से मैं वाकिफ हूँ। इसलिए मैं समझ सकता था कि उसके सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति किस चीज से गुजरता होगा। कई लोगों की आदत होती है उन्हें परेशानी चाहिए होती है ताकि वो खुद पर दया कर सके। वो दीन हीन बना रहना चाहते हैं। यह self pity की भावना इतनी शक्तिशाली  होती है कि अगर उन्हें सब सुख दिया जाए तो भी वो दुखी रहेंगे और उन सुखों से भागेंगे क्योंकि फिर उनके पास परेशानी के नाम पर कुछ नहीं बचेगा और वो अपना रोना नहीं रो पाएंगे।कई बार शायद इससे खीज भी उपजती है। उपन्यासिका में भी यह देखने को मिलती है।

कहानी में प्रेम संबंधों से जुड़े कई और पहलू देखने को मिलते हैं। वो पहलू आप किताब पढ़कर ही जाने तो बेहतर रहेगा। कहानी पढ़ते हुए कही मेरे मन में यह ख्याल भी आता है कि यह लड़की दो साल से इस व्यक्ति के साथ कैसे रह सकती है। लेकिन प्यार अँधा होता है। कई बार हम हमे इशारे मिलते भी है तो भी हम उसे नजरअंदाज करते रहते हैं। बाहरी आदमी को वो इशारे दिख जाते हैं लेकिन जो उस रिश्ते में होते उन्हें शायद वो नहीं दिखाई देते।

इन सब बातों के अलावा मुझे अजीत कौर जी की भाषा बहुत पसंद आई। जिस तरह से वो चीजों के विषय में लिखती हैं वो बहुत सुंदर है और मन को भा जाता है। मन करता है आप इस अनुच्छेद को पढ़ते ही जाएँ  विशेषकर जिस तरह की उपमाओं का वो प्रयोग करती हैं। इस उपन्यासिका को पढ़ने के बाद में मैं उनके दूसरे उपन्यासों और उनकी आत्म कथा को पढ़ने के लिए उत्सुक हो चुका हूँ। ये तो पक्का है कि इसी वर्ष उनका लिखी और कृतियों को पढ़ने की कोशिश करूँगा। 

यहाँ सुभाष नीरव जी की भी तारीफ़ करनी होगी। यह एक अनुवाद है और कहीं से भी अनुवाद प्रतीत नहीं होता है होता है। यह एक अच्छे अनुवाद का मापदंड होता है। उनके द्वारा किये गए अन्य कृतियों के अनुवाद भी मैं पढ़ना चाहूँगा।

किताब के कुछ अंश:

दिसम्बर की इस ठिठुरती रात में मैं बिस्तर पर लेटे हुए अपने जिस्म को मानो करीब खड़े होकर देखती हूँ। मुझे लगता है,जैसे एक सवालिया निशान बिस्तर पर पड़ा हो। घुटने पेट की ओर उठे हुए। गर्दन आगे की ओर झुकी हुई। पीठ गोल।

सवालिया निशान।


अपने घुटने बड़े मासूम प्रतीत होते हैं। जैसे ठंड में ठिठुरे हुए दो छोटे खरगोश पास-पास सटकर बैठे हों। सिकुड़कर।

मैंने तुझे कभी अपनी कोई पसंद नहीं बताई। तूने कभी पूछी ही नहीं थी। जब तेरे संग बाहर कहीं रोटी खानी होती, आर्डर तू ही देता था। शाम कैसे बिताए जाए, यह भी तू ही फैसला करता था। अमुक नाटक देखना है या नहीं देखना। उस आर्टिस्ट की एक्जीबिशन पर जाना है या नहीं। फलां मूवी देखनी है या नहीं, ये फैसले तेरे थे।

मैंने जानबूझकर इन फैसलों का हक तुझे दे रखा था। मैं जानती थी, हर मर्द की ईगो बड़ी ज़ालिम होती है। उसे तृप्त करने के लिए कई फैसलों का हक उसे दे देना चाहिए।


और फिर, शायद, ये सारे हक तुझे देकर कोई बहुत अहम हक मैं अपने लिए बचाकर रखना चाहती थी।

अचानक बहुत सारी उदासी मेरे अन्दर खाली हवा की तरह भरने लगी। हवा,जिसमें काला अँधेरा घुला हुआ था।
खामोशी।
तनी हुई, बेहिस, बेबस खामोशी।

आसपास के सारे लोग जैसे नहीं थे। यह लोगों से भरा कमरा नहीं था। यह तो एक टापू था,छोटा सा। आसपास तटहीन समुद्र था। कोई जीव जन्तु नहीं था आसपास। सिर्फ तू था और मैं थी। और वह टापू ही बस, सारी दुनिया थी। हमारी दुनिया, जो अभी-अभी, नई नकोर सिर्फ हमारे लिए तामीर हुई थी।

जब तू करीब न होता, मैं तेरा इन्तजार करती रहती।
जब तू मेरे नजदीक होता, मैं तेरे पास बैठी तेरा इन्तजार करती रहती।
पर वो क्षण तो कोई बारिश का कतरा था। तार से लटकता। वक्त के तटहीन फासले के एक छोटे से लम्हे में उस बारिश की एक बूँद में ब्रह्मांड के सातों रंग घुलकर काँप उठे थे।
फिर वह कांपकर नीचे गिर पड़ा था।
और अब ढूँढे नहीं मिल रहा था।
और मैं उसके लौट आने की प्रतीक्षा कर रही थी।

बहुत सारे बेरंग दिन गुज़र गए।

ये ऐसे दिन होते, जिन्हें बाद में याद करने पर उनके बारे में कुछ भी याद न आता। बस, जैसे बड़े से फावड़े से किसी ने वक्त की अंतहीन भूरी जमीन में से एक बड़ा सा टुकड़ा खोदकर दूसरी ओर की मिट्टी के ढेर में फेंक दिया हो।

तुम मर्द चाहते क्या हो औरत से? अगर तुम्हारे साथ सो जाए वह, तो वह घटिया कंजरी! उसके बिस्तर से निकलकर अगले पल ही तुम उसके बारे में कह सकते हो - "शी इस ए बिच।" और जिस औरत के बिस्तर तक न ले जा सको, उसे तुम समझते हो कि काम की नहीं है। ठंडी, बेलज्जत, बेजायका औरत!

अंत में यही कहूँगा कि यह उपन्यासिका मुझे पसंद आई। अजीत जी की  भाषा ने मुझे प्रभावित किया। शीर्षक कहानी पर फिट बैठता है। यह एक खत्म हो चुके रिश्ते का पोस्ट मार्टम ही है। इस पोस्टमार्टम का नतीजा क्या होता है यह आप इस कृति को पढ़कर जानेंगे तो बेहतर होगा।


अगर किताब आपने पढ़ी है तो आपको यह कैसी लगी? अपने विचारों को कमेन्ट के माध्यम से मुझे जरूर बताइयेगा। अगर किताब आप पढ़ना चाहते हैं तो इसे आप निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
यह उपन्यास पंजाबी से हिन्दी में अनूदित था। मुझे हिन्दी में अनूदित साहित्य पढ़ने में मजा आता है। ऐसे ही दूसरे अनुवादों के विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
हिन्दी अनुवाद
पंजाबी से हिन्दी में अनूदित


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

2 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. सुंदर दिलचस्प समीक्षा और पसंदीदा सेंटेन्सेस अलग से कोट किये वो और अच्छा लगा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया, अमित जी। मेरी कोशिश रहती है कि उपन्यास के जो अंश मुझे पसंद आएँ उन्हें लेख में शामिल करूँ ताकि ये भी पाठक के मन में एक तरह की उत्सुत्कता जगा सके।

      Delete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल