नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

कातिल कौन - सुरेंद्र मोहन पाठक

रेटिंग: 4/5
उपन्यास 29 अक्टूबर 2016 से 30 अक्टूबर के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 284
प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स

पाठक साहब का उपन्यास कातिल कौन पढ़ा। यह किताब सबसे पहले ई-बुक के रूप में प्रकाशित हुई थी और उसके काफी समय पश्चात पेपरबेक संस्करण में आई थी। मैंने उस वक्त  इसे नहीं पढ़ा था क्योंकि उम्मीद थी कि इसका पेपरबैक संस्करण आएगा और मुझे ई बुक से ज्यादा हार्ड बुक पढने में मज़ा आता है। खैर संस्करण आया और एक सरप्राइज भी लाया। जब राजा वालों ने इसे पेपरबैक के तौर पर प्रकाशित किया तो कातिल कौन का कलेवर कम होने के कारण इसमें सुधीर कोहली 'द लकी बास्टर्ड' की लघु कथा भी जोड़ दी गयी जो कि मेरे जैसे सुधीर कोहली के फैन के लिए एक अच्छी बात थी। तो अब अगर इस किताब की कृतियों पर बात करें तो इसमें तीन चीज़ हो गयी। एक लेखकीय, कातिल कौन और खुली खिड़की। इधर मैं इन तीनों के ऊपर ही बात करूँगा। 

लेखकीय
पाठक साहब का उपन्यास हो और लेखकीय न हो तो लगता है कुछ कमी है। लेकिन इसमें ऐसा नहीं था। कातिल कौन में पाठक साहब का एक बढ़िया लेखकीय है जिसमे कई रूचिकर बातों को सामने रखा है। जेम्स बांड, हेरक्युल पोइरो जैसे किरदारों के विषय में मनोरंजक जानकारी दी है। इसमें मुझे ये भी पता चला कि खुद पाठक साहब ने जेम्स बांड को केंद्र में रखकर सात के करीब उपन्यास लिखे थे। ये जानकारी मेरे लिए नयी थी। 
लेखकीय के विषय में तो केवल इतना कहूँगा कि वो जबरदस्त है और निराश नहीं करती है। 


कातिल कौन (4.5/5)

पहला वाक्य:
जयन्त निगम का ऑफिस- पी बिलिमोरिया एंड कम्पनी- लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन की छः मंजिला इमारत की दूसरी मंजिल पर था जहाँ जब सुबह उसने कदम रखा था तो वो कंपनी का बाईस साल पुराना मुलाजिम था और जब वो ऑफिस से बाहर कदम रख रहा था तो बेरोजगार था।

जयन्त निगम एक पचास साल का व्यक्ति था। अचानक से जब उसे उसकी नौकरी से निकाला गया तो उसके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।  उसके पांच बच्चे थे और जमा पूंजी के नाम पर ढेला भी नहीं था। अब ऐसे में अपने परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी को उठाना एक भीमकाय परेशानी के रूप में उसके सामने मुँह फाड़े खड़ी थी।

सोमेश निगम जयन्त का बड़ा भाई था और काफी दौलतमंद था। उसे जयन्त और उसके परिवार की खामियाँ निकालने में सुकून हासिल होता था। जयन्त और उसका परिवार उसके दुर्व्यवहार को खाली इसलिए झेलते थे क्योंकि वो काफी अमीर था और सोमेश के बाद उसकी दौलत का वारिस जयन्त ही था। 

ऐसे में जब सोमेश का कत्ल हुआ तो सारा शक वहाँ मौजूद परिवार के लोगों के ऊपर गया। उन आठों में से ही कोई एक कातिल था और वो आठों ही एक दूसरे को बचाने के लिए जी जान से लगे हुए थे।

क्या उनमे से कोई कातिल था??? अगर हाँ तो कौन और अगर नहीं तो कातिल था कौन??

कातिल कौन एक मर्डर मिस्ट्री है। एक मर्डर मिस्ट्री के अक्सर दो पहलू होते हैं क़त्ल क्यों हुआ और कैसे हुआ। 
एक मर्डर मिस्ट्री के अच्छे होने का सबूत ये होता है कि पाठक लेखक के बताने से पहले ये पता न लगा पाए कि कातिल कौन है और क़त्ल को किस प्रकार से अन्जाम दिया गया। अक्सर ये बात लेखक के लिए करनी मुश्किल होती है।  अक्सर या तो कातिल का पता लग जाता है या ये पता लग जाता है कि खून कैसे किया गया। एक बार ये पता लगने पर भी पाठक कहानी पढना छोड़ता नहीं है बल्कि इस उम्मीद में पढता रहता है कि क्या वाकई ऐसा ही हुआ है। कातिल कौन की बात अगर मैं करूँ तो मुझे ये उपन्यास इसलिए पसंद आया क्योंकि मैं इसमें कातिल  का पता न लगा पाया। क़त्ल कैसे हुए ये भी मेरे लिए गुत्थी बनी रही और धीरे धीरे तभी खुलती रही जब पाठक साहब ने इसे खोलना मुनासिब समझा। 

ऊपर दी गयी वजहों से उपन्यास मेरी नज़रों में तो काफी अच्छा था। इसलिए मैं तो चाहूँगा कि आप इसे एक बार पढ़े और जैसे इसने मेरा मनोरंजन किया वैसे ही इसको पढने का आनंद आपको भी प्राप्त हो। 

खुली खिड़की(सुधीर कोहली सीरीज)(3.5/5)

पहला वाक्य: 
उसका नाम शीना तलवार था और वो कनाट प्लेस के उस बार-कम-रेस्टोरेंट में स्टेवार्डेस थी जिसका नाम कोजी कार्नर था और जो मेरा फेवरेट था।

शीना तलवार कोजी कार्नर नामक रेस्टोरेंट में एक स्टीवार्डेस थी। ये सुधीर कोहली का पसंदीदा रेस्टोरेंट भी था। फिर एक दिन अचानक शीना तलवार की उसकी बिल्डिंग से गिरकर मौत हो गयी।

पुलिस की माने तो ये खुदखुशी थी। लेकिन उसकी बहन पिंकी तलवार इससे सहमत नहीं थी उसकी बात माने तो शीना की हत्या हुई थी। और वो इसका जिम्मेदार मनोरथ सलवान नामक व्यक्ति को मानती थी जो कि शीना का बॉय फ्रेंड और लिविंग पार्टनर था।

पुलिस इससे सहमत नहीं  थी क्योंकि शीना का दरवाजा अंदर से बंद था। उसका लॉक लगा था और अंदर से चैन लगी थी।  इसलिए क़त्ल का सवाल ही नहीं बैठता था।

अब ये सुधीर कोहली के ऊपर निर्भर था कि वो कातिल का पता लगा पाता है या नहीं? क्या शीना ने खुदखुशी की थी?? अगर नहीं तो किसने किया था उसका कत्ल??

खुली खिड़की को कातिल कौन में जगह इसलिए मिल पायी क्योंकि कातिल कौन कदरन छोटा उपन्यास था। 
 खुली खिड़की एक लॉक्ड रूम मर्डर मिस्ट्री है।  ये मर्डर मिस्ट्री की एक श्रेणी है जिसमे कत्ल ऐसे कमरे में होता है जिसमे कोई आया गया नहीं हो सकता। इसमें भी मामला ऐसा ही है इसलिए इसे भी लॉक्ड रूम की श्रेणी में रखा जा सकता है। 

इतने दिनों बाद सुधीर से मुलाकात हुई तो मज़ा आ गया।  सुधीर कोहली को लेकर ये बात मेरे मन में है कि इसके उपन्यास के रीप्रिंट उपलब्ध होने चाहिए। मुझे विमल से ज्यादा सुधीर पसंद है। 

कहानी की बात करूँ तो कहानी सीधी है। कहानी जब आप पढ़ते हैं तो आपको ज्ञात होता है कि पुलिसये लापरवाही की कहानी ज्यादा है। सुधीर मामूली तरीके से इसे निपटा देता है।  अगर पुलिस थोड़ा सा ध्यान लगा कर काम करती तो कोई बड़ी बात नहीं थी कि वो ही इसे सुलझा लेती। 

अब चूँकि पुलिस के ऊपर बहुत दबाब रहता है तो वो अगर किसी मामले को जल्दी से सुलझा सके तो वो ये करने की कोशिश करते हैं। उनका ये रुख अख्तियार करना वाजिब है। अरुशी मर्डर केस में जो लापरवाही पुलिस ने की थी उसके सामने तो इस उपन्यास में हुई लापरवाही मामूली है। 

एक कमी कहानी की मुझे ये भी लगी कि ये कहानी थी। ये ऐसा था कि बहुत दिनों बाद आपके सामने आपका पसंदीदा व्यंजन बना हो लेकिन आपको एक चम्मच में ही संतुष्ट करना पड़े। अगर उपन्यास होता तो मज़ा बहुत ज्यादा होता।  

फिर भी कहानी रोमांचक है और सुधीर के साथ इस केस को सोल्व करना एक मनोरंजक अनुभव रहा। 

अंत में इतना ही कहूँगा कि अगर आप एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री की तलाश में है जो आपका भरपूर मनोरंजन करेगी तो आप कातिल कौन पढ़कर नहीं निराश नहीं होंगे। कम से कम मेरा तो इसने भरपूर मनोरंजन किया। 
अगर आपने उपन्यास पढ़ा है तो इसके विषय में अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करियेगा।  कमेंट बॉक्स में टिपण्णी जरूर करियेगा। 

अगर आपने किताब नही पढ़ी है तो किताब को आप निम्न लिंक से मंगवा सकते है: 
अगर आप ई बुक के शौक़ीन हैं तो यह किताब डेली हंट नामक एंड्राइड एप्प में भी उपलब्ध है। आप उसमे जाकर इसे खरीदकर पढ़ सकते हैं। 
FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

3 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. Hey keep posting such good and meaningful articles.

    ReplyDelete
  2. विकास जी,
    आपकी समीक्षा पढ़कर मुझे यह उपन्यास पढ़ने का काफी मन कर रहा है। पर अफसोस यह न यो अमेज़ॉन पर उपलब्ध है और न ही कही ओर।

    क्या आपको पता है यह उपन्यास कहा मिल सकता है?

    ReplyDelete
    Replies
    1. यह किताब राजा पॉकेट बुक्स से आई थी। हो सकता है उनके पास पड़ी हो। पहले उनके ऑनलाइन पोर्टल में रहती थी लेकिन अब उन्होंने उधर से उपन्यास हटवा दिए हैं। उम्मीद है पाठक साहब जल्द ही इसे किंडल में डालेंगे।

      Delete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल