नेवर गो बैक | लेखक: ली चाइल्ड | शृंखला: जैक रीचर | अनुवादक: विकास नैनवाल

ठंडी रेत - एस सी बेदी

रेटिंग : 2.5/5
किताब 3rd अगस्त 2017  से अगस्त 2017 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 110
प्रकाशक : सूरज पॉकेट बुक्स
श्रृंखला : राजन-इकबाल श्रृंखला



पहला वाक्य:
मोहनी खामोशी से आकर सोफे पर बैठ गई। 


शहर में अचानक एक सिलसिला शुरू हो गया था। कई खूबसूरत नौजवान लड़के लड़कियाँ गायब होने लगे थे और कुछ की लाशें भी पायी गयी थीं। इस बात से शहर में एक दहशत का माहौल फ़ैल गया था।

आखिर कौन था जो नौजवान लड़के लड़कियों को गायब कर रहा था? उसका इसके पीछे क्या मकसद था?

इन्ही प्रश्नों के उत्तर ढूँढने के लिए राजन इकबाल को बुलाया गया। उनकी तहकीकात ही उन्हें भारत से नैरोबी के रेगिस्तानों तक ले गयी।

आगे क्या हुआ ? क्या राजन और इकबाल गुत्थी को सुलझा पाए? इसके लिए उन्हें किन किन मुसीबतों से गुजरना पड़ा? ये सब तो आप इस उपन्यास को पढ़कर ही जान पाएंगे।

मुख्य किरदार :
राजन - सीक्रेट एजेंट
इकबाल - राजन का पार्टनर और सीक्रेट एजेंट
सलमा - इकबाल की प्रेमिका
रजनी - एक युवती जो राजन की गाड़ी से टकरा गयी थी
शेख वाजिद अली - नैरोबी में मौजूद एक जगह 'जन्नत' का मालिक
बलबीर सिंह - एक इंस्पेक्टर जो अक्सर राजन इकबाल के साथ केस में शामिल होता है
देवदत्त - एक डकैती डालने वाले गिरोह का सरगना
मोहिनी - देवदत्त की प्रेमिका

राजन इकबाल श्रृंखला के मैंने अब तक केवल दो ही उपन्यास पढ़े हैं और वो मुझे पसंद आये थे।  इस वजह से इस उपन्यास से मुझे काफी अपेक्षाएं थी। शायद यही वजह भी है कि मुझे इस उपन्यास के औसत होने का दुःख भी है।

उपन्यास के साथ दिक्कत क्या है इस बात पर बाद में बात करेंगे।  उससे पहले उपन्यास के उन पहलुओं पे बात करते हैं जो मुझे पसंद आये। देवदत्त और मोहिनी मेरे लिए नये किरदार थे। वैसे तो वो डकैतो के समूह के सरगना हैं लेकिन उनके आपस के संवाद मज़ेदार थे। ऐसे क्यूट चोर हों तो फिर बात ही क्या हो।  वो दिल के अच्छे भी है और खून खराबे से जब तक बच सकते हैं तब तक बचते हैं। राजन इकबाल से वो वाकिफ हैं तो मुझे लगता है वो पुराने किरदार हैं। उनका इतिहास क्या है ? ये मुझे नहीं पता लेकिन मैं जानने के लिए उत्सुक हूँ।

इसके साथ साथ सलमा और इकबाल के आपस के प्यार ने भी मुझे गुदगुदाया। दोनों की लड़ाई को पढने में आनन्द आया।  इसके साथ इकबाल का  बलबीर सिंह की टांग खींचते रहना और बलबीर का भी  भी बिना बुरा माने उनका साथ देता रहना उपन्यास में मनोरंजन और हंसी का तडका लगाता है। उसे पढने में भी मज़ा आता है। राजन का कठोर बनना और रजनी का उसे अपनी तरफ आकर्षित करने में नाकामयाब होना भी मनोरंजक था।  पढ़ते हुए मैं ये ही सोच रहा था कि राजन क्यों रजनी की तरफ ध्यान नहीं दे रहा था? क्या उसका दिन टूटा हुआ था या उसे सचमुच ही इस बात से कोई फर्क नहीं पढता था।


खैर, मुझे किरदारों के बीच के ईक्वेश्न्स पसंद आये और इन किरदारों के दूसरे किस्से पढने के लिए मैं उत्सुक रहूँगा।

अब आप सोच रहे होंगे कि मेरी दिक्कत किधर है। उपन्यास की जान किरदार होते हैं और वो मुझे ज्यादातर पसंद ही आये थे। फिर उपन्यास औसत क्यों लगा ? तो इसका जवाब कहानी है। कहानी में मुझे ज्यादा दम नहीं लगा। राजन और इकबाल दोनों  के सामने सबूत इत्तफाकन आते गये। उसके लिए उन्होंने कोई मेहनत नहीं की। थोडा बहुत डिटेक्शन होता तो सही रहता। इससे उपन्यास ज्यादा रोमांचक हो सकता था।

इसके इलावा उपन्यास के मुख्य खलनायक शेख वाजिद अली ने भी मुझे प्रभावित नहीं किया। एक कहानी की जान उसका खलनायक होता है। खलनायक जितना तेज तर्रार, ताकतवर होगा उसका अंत देखने में उतना ही मज़ा आता है। लेकिन इधर इसके उलट वो मुझे बेवकूफ ही लगा। अगर मैं किन्ही लोगों को अपने कमांडर के पद पर नियुक्त करूंगा तो सबसे पहले उनके इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त करूंगा और तब भी उन पर पूरा विश्वास नहीं करूंगा लेकिन ये तो इतने भोले निकले कि खुद ही दुश्मनों के हाथ में अपनी गर्दन रेतने के लिए चाकू थमा दिया। अगर खलनायक खतरनाक और काईयां  होता तो उपन्यास काफी अच्छा बन सकता था।

एक और बात थी जो मुझे खली। उपन्यास की कहानी नैरोबी केन्या में होती है। जन्नत में हो सकता था कि कई देशों के लोग रहे  होंगे  और कई देशों के खानपान रहे होंगे। कुछ नहीं तो नैरोबी के लोग और उनका खानपान रहा होगा।  ऐसे में पाठको को उस देश और अन्य खान पानों के विषय में जानकारी देना का अच्छा मौका था लेकिन बाते गोल गप्पे, चाट पकोड़ी की होती रही। इधर ये नहीं कह रहा कि इनमे कोई खराबी है लेकिन अगर दूसरे चीजों की तरफ तवज्जो दी जाती ,जिसके लिए यकीनन थोड़ा रिसर्च करनी पड़ती, तो पाठको को एक नयापन मिलता। नयी संस्कृति से उनकी वाकिफियत होती और उपन्यास ज्यादा रोचक बन सकता था।   

उपन्यास के अंत में थोड़ा और घुमाव होते। राजन और मण्डली को अपने मकसद तक पहुँचने के लिए कुछ और मेहनत करनी पड़ती तो भी उपन्यास में रोमांच बढ़ सकता था। लेकिन अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ है।

ऊपर दिए कारणों के लिए ही उपन्यास की कहानी मुझे औसत से थोड़ा कम लगी लेकिन चूँकि मुख्य किरदारों के बीच के संवाद मुझे पसंद आये तो रेटिंग को 1.5 से 2.5 तक धकेला।

क्या आपको इस उपन्यास को पढना चाहिए ? अगर राजन इकबाल के फेन हैं तो एक बार पढ़ सकते हैं। उपन्यास में हंसी मजाक है तो उसके लिए इसे पढ़ा जा सकता है लेकिन रोमांच, रहस्य के लिए उपन्यास पढना चाहते हैं तो थोड़ी निराशा हाथ लग सकती है। उम्मीद है अगला उपन्यास बेहतर होगा।

अगर आपने किताब पढ़ी है तो इसके विषय में अपनी राय जरूर दीजियेगा। अगर किताब नहीं पढ़ी है तो आप इसे निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं :
पेपरबैक
किंडल
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

Post a Comment

6 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
  1. पहले की तरह उतना खास तो नही लगा। पर एक बार पढ़ा जा सकता है । एन्जॉय किया मैंने। पढ़ते समय।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, सही कहा आपने। थोड़ा इसके कुछ पहलुओं पर बैठकर चर्चा करी जाती और उन पर काम किया जाता तो उपन्यास काफी अच्छा बन सकता था।

      Delete
  2. मैंने ये तो नही पढ़ा पर राजन इक़बाल के काफी बाल पॉकेट बुक पढ़ी है जो की एक टाइम पास उपन्यास होते थे उसमे भी सलमा और इक़बाल के बीच थोड़ी मजेदार नोक झोंक होती थी और राजन हर बार की तरह राजन का कठोर बने रहना और राजनी का उसे हर बार की तरह अपनी और खींचना शायद आज तक नहीं बदला है। राजन उसे मन ही मन बहुत प्यार करता है पर उसे अपने जुबान पर नहीं लाता है अब ना जाने क्यों ये तो श्री बेदी जी ही बता सकते है

    ReplyDelete
  3. मैंने ये तो नही पढ़ा पर राजन इक़बाल के काफी बाल पॉकेट बुक पढ़ी है जो की एक टाइम पास उपन्यास होते थे उसमे भी सलमा और इक़बाल के बीच थोड़ी मजेदार नोक झोंक होती थी और राजन हर बार की तरह राजन का कठोर बने रहना और राजनी का उसे हर बार की तरह अपनी और खींचना शायद आज तक नहीं बदला है। राजन उसे मन ही मन बहुत प्यार करता है पर उसे अपने जुबान पर नहीं लाता है अब ना जाने क्यों ये तो श्री बेदी जी ही बता सकते है

    ReplyDelete
  4. यह बेदी जी का पहला उपन्यास है जो मैंने पढ़ा था | ठीक ठाक लगा था |

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सही कहा। थोड़ा शोध की कमी थी। बाकी उपन्यास एक बार पढ़े जाने लायक था।

      Delete

Top Post Ad

Below Post Ad

चाल पे चाल